मिट नहीं सकता क़यामत तक निशान-ए-आरज़ू
हुस्न जिस्म-ए-आरज़ू है इश्क़ जान-ए-आरज़ू
वो सुनें सीने से लग कर दास्तान-ए-आरज़ू
दिल की हर आवाज़ होती है ज़बान-ए-आरज़ू
बे-ख़ुदी की मंज़िलों में सर्फ़-ए-हैरत हो गया
दिल कि ले दे कर बचा था इक निशान-ए-आरज़ू
बे-क़रारी बे-ख़ुदी बेचारगी दीवानगी
हैं ये उनवानात-ए-ज़ेब-ए-दास्तान-ए-आरज़ू
हो चुकी रोज़-ए-अज़ल वाबस्तगी-ए-हुस्न-ओ-इश्क़
एक जान-ए-आरज़ू है इक जहान-ए-आरज़ू
उन की दुज़्दीदा निगाहों में ये क्या ए'जाज़ था
जी उठे एक-बारगी सब कुश्तगान-ए-आरज़ू
हो चले उन के लब-ए-नाज़ुक तबस्सुम-आश्ना
बर्क़ से कब तक बचेगा आशियान-ए-आरज़ू
ज़िंदगी मेरे लिए 'तालिब' सज़ा-ए-इश्क़ है
मेरी हस्ती है मुजस्सम दास्तान-ए-आरज़ू

ग़ज़ल
मिट नहीं सकता क़यामत तक निशान-ए-आरज़ू
तालिब बाग़पती