मिस्ल-ए-रक़्स-ए-शरर नहीं आती
ज़िंदगी लौट कर नहीं आती
दिल-दही का तो कोई सामाँ कर
दिलरुबाई अगर नहीं आती
हिज्र में मौत ढूँढने वाले
ऐसी शब की सहर नहीं आती
दिल को दे कर फ़रेब-ए-शौक़-ओ-तलब
अब तमन्ना नज़र नहीं आती
ये तबीअ'त है हज़रत-ए-नासेह
ये समझ सोच कर नहीं आती
आलम-ए-बे-दिली से भी यारब
दिल की कोई ख़बर नहीं आती
दर्द दिल में अगर न हो हम-दम
शाइ'री उम्र-भर नहीं आती
आदमी ठोकरें न खाए अगर
ज़िंदगी राह पर नहीं आती
रास आती नहीं अगर तदबीर
मौत क्यूँ चारागर नहीं आती
अपनी हालत अगर मैं ख़ुद न कहूँ
क्या उन्हें भी नज़र नहीं आती
तुम को आते हैं सब जफ़ा-ओ-जौर
इक वफ़ा ही मगर नहीं आती
जिस नज़र से वो देखते थे कभी
वो नज़र अब नज़र नहीं आती
वाए उस ज़िंदगी की महरूमी
मौत भी उम्र-भर नहीं आती
आह वो आरज़ू-ए-दिल 'साहिर'
ता-क़यामत जो बर नहीं आती

ग़ज़ल
मिस्ल-ए-रक़्स-ए-शरर नहीं आती
साहिर होशियारपुरी