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मिस्ल-ए-रक़्स-ए-शरर नहीं आती | शाही शायरी
misl-e-raqs-e-sharar nahin aati

ग़ज़ल

मिस्ल-ए-रक़्स-ए-शरर नहीं आती

साहिर होशियारपुरी

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मिस्ल-ए-रक़्स-ए-शरर नहीं आती
ज़िंदगी लौट कर नहीं आती

दिल-दही का तो कोई सामाँ कर
दिलरुबाई अगर नहीं आती

हिज्र में मौत ढूँढने वाले
ऐसी शब की सहर नहीं आती

दिल को दे कर फ़रेब-ए-शौक़-ओ-तलब
अब तमन्ना नज़र नहीं आती

ये तबीअ'त है हज़रत-ए-नासेह
ये समझ सोच कर नहीं आती

आलम-ए-बे-दिली से भी यारब
दिल की कोई ख़बर नहीं आती

दर्द दिल में अगर न हो हम-दम
शाइ'री उम्र-भर नहीं आती

आदमी ठोकरें न खाए अगर
ज़िंदगी राह पर नहीं आती

रास आती नहीं अगर तदबीर
मौत क्यूँ चारागर नहीं आती

अपनी हालत अगर मैं ख़ुद न कहूँ
क्या उन्हें भी नज़र नहीं आती

तुम को आते हैं सब जफ़ा-ओ-जौर
इक वफ़ा ही मगर नहीं आती

जिस नज़र से वो देखते थे कभी
वो नज़र अब नज़र नहीं आती

वाए उस ज़िंदगी की महरूमी
मौत भी उम्र-भर नहीं आती

आह वो आरज़ू-ए-दिल 'साहिर'
ता-क़यामत जो बर नहीं आती