मिस्ल-ए-आईना बा-सफ़ा हैं हम
देखने ही के आश्ना हैं हम
नहीं दोनों जहाँ से काम हमें
इक फ़क़त तेरे मुब्तला हैं हम
देख साए की तरह ऐ प्यारे
साथ तेरे हैं और जुदा हैं हम
टुक तू कर रहम ऐ बुत-ए-बे-रहम
आख़िरश बंदा-ए-ख़ुदा हैं हम
ज़ुल्म पर और ज़ुल्म करते हो
इस क़दर क़ाबिल-ए-जफ़ा हैं हम
जूँ सबा नाम को तो हैं हम लोग
लेक देखा तो जा-ब-जा हैं हम
ज़ुल्फ़ें कहती हैं उस की, आशिक़ के
मार लेने को तो बला हैं हम
जब से पैदा हुए हैं जूँ अफ़्लाक
आह गर्दिश ही में सदा हैं हम
हम भी कुछ चीज़ हैं मियाँ लेकिन
ये नहीं जानते कि क्या हैं हम
शोला-ए-ना-तवान की मानिंद
हाथ में तेरे ऐ सबा हैं हम
गर यही है हवा यहाँ की तो आह
अब कोई आन में हवा हैं हम
तू जो कहता है हर घड़ी तेरे
देखने से बहुत ख़फ़ा हैं हम
क्या करें यार तू ही कर इंसाफ़
तुझ पे माइल नहीं हैं या हैं हम
दिल के हाथों से ऐ मियाँ 'जुरअत'
ज़िंदगानी से भी ख़फ़ा हैं हम
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-आईना बा-सफ़ा हैं हम
जुरअत क़लंदर बख़्श