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मिसाल इस की कहाँ है कोई ज़माने में | शाही शायरी
misal isko kahan hai koi zamane mein

ग़ज़ल

मिसाल इस की कहाँ है कोई ज़माने में

जावेद अख़्तर

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मिसाल इस की कहाँ है कोई ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाए हम ने पाने में

वो शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में

जो मुंतज़िर न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हम ने देर लगा दी पलट के आने में

लतीफ़ था वो तख़य्युल से ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हम ने ही आज़माने में

समझ लिया था कभी इक सराब को दरिया
पर इक सुकून था हम को फ़रेब खाने में

झुका दरख़्त हवा से तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुकने टूट जाने में