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मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही | शाही शायरी
meri zaban se meri dastan suno to sahi

ग़ज़ल

मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही

सुदर्शन फ़ाख़िर

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मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
यक़ीं करो न करो मेहरबाँ सुनो तो सही

चलो ये मान लिया मुजरिम-ए-मोहब्बत हैं
हमारे जुर्म का हम से बयाँ सुनो तो सही

बनोगे दोस्त मिरे तुम भी दुश्मनो इक दिन
मिरी हयात की आह-ओ-फ़ुग़ाँ सुनो तो सही

लबों को सी के जो बैठे हैं बज़्म-ए-दुनिया में
कभी तो उन की भी ख़ामोशियाँ सुनो तो सही