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मिरी वफ़ा मिरा ईसार छीन ले मुझ से | शाही शायरी
meri wafa mera isar chhin le mujhse

ग़ज़ल

मिरी वफ़ा मिरा ईसार छीन ले मुझ से

वक़ार मानवी

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मिरी वफ़ा मिरा ईसार छीन ले मुझ से
है कौन जो मिरा किरदार छीन ले मुझ से

ये ज़िंदगी कोई सौ बार छीन ले मुझ से
मगर नहीं कि तिरा प्यार छीन ले मुझ से

ये वक़्त वो है कि क़दमों में बैठने वाला
ये चाहता है कि दस्तार छीन ले मुझ से

अता हो या तो वही दबदबा वही जज़्बा
नहीं तो ये मिरी ललकार छीन ले मुझ से

सवाल करती है उम्र-ए-रवाँ कि है कोई
जो मेरी तेज़ी-ए-रफ़्तार छीन ले मुझ से

मैं ज़ेर-ए-साया-ए-दीवार भी हूँ ख़ौफ़-ज़दा
कि वो न साया-ए-दीवार छीन ले मुझ से

मिरा हरीफ़ कम-औक़ात चाहता है 'वक़ार'
मिरा असासा-ए-अफ़्क़ार छीन ले मुझ से