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मिरी सूरत में मिरा यार है अल्लाह अल्लाह | शाही शायरी
meri surat mein mera yar hai allah allah

ग़ज़ल

मिरी सूरत में मिरा यार है अल्लाह अल्लाह

मरदान सफ़ी

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मिरी सूरत में मिरा यार है अल्लाह अल्लाह
मिरे दिल में मिरा दिलदार है अल्लाह अल्लाह

क्या ही तस्वीर बनी है ये अहा हा हा हा
इस में आपी वो नुमूदार है अल्लाह अल्लाह

शक्ल-ए-आदम के सिवा और न भाया नक़्शा
सारे आलम में ये इज़हार है अल्लाह अल्लाह

मेरा जिस्म और मिरी जाँ है वही जाँ बिल्कुल
मैं कहूँ क्या कि मैं हूँ यार है अल्लाह अल्लाह

मस्ती-ए-हर-दो-जहाँ है दिल-ए-आदम से अयाँ
यही बेहोश तो होश्यार है अल्लाह अल्लाह

जिस को निस्बत हो पयम्बर की वही हो आगाह
मेरी बातों में जो असरार है अल्लाह अल्लाह

ख़ाका मुर्शिद का हवा में तो हुआ यार अयाँ
ये अजब फ़ैज़ का दरबार है अल्लाह अल्लाह

क़िस्सा क़रनों में न तय होता वो दम-भर में हुआ
फ़ज़्ल मुर्शिद का ये इज़हार है अल्लाह अल्लाह

शह-ए-'मर्दां' न कोई और न ख़ादिम न सफ़ी
शक्ल-ए-अहमद का ये इज़हार है अल्लाह अल्लाह