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मिरी क़िस्मत में वस्ल उस का अगर ऐ आसमाँ होता | शाही शायरी
meri qismat mein wasl us ka agar ai aasman hota

ग़ज़ल

मिरी क़िस्मत में वस्ल उस का अगर ऐ आसमाँ होता

शंकर लाल शंकर

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मिरी क़िस्मत में वस्ल उस का अगर ऐ आसमाँ होता
तो तू भी मेहरबाँ होता ख़ुदा भी मेहरबाँ होता

सितम के बा'द होता है करम भी ये अगर सच है
मिरे दिल पर भी ऐसा ही सितम ऐ जान-ए-जाँ होता

बलाएँ ले के दुश्मन मर गया मेरी बला समझे
समझ में मेरी जब आता तमाशा ये यहाँ होता

ज़मीं पर सोने वालों को हिक़ारत से न ठुकराता
हमारी तरह गर्दिश में जो तू ऐ आसमाँ होता

चमन ऊदी घटा साक़ी सुराही और पैमाना
ये सब सामान होते शैख़ का फिर इम्तिहाँ होता

सुना है फ़स्ल-ए-गुल आई हुई फिर गुलशन-आराई
चमन में काश अपना भी क़फ़स ऐ बाग़बाँ होता

वो मेरा रो के कहना उन के 'शंकर' हँस के फ़रमाना
अरे उल्फ़त में कोई भी नहीं है शादमाँ होता