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मिरी जुस्तुजू का हासिल मिरा शौक़-ए-वालिहाना | शाही शायरी
meri justuju ka hasil mera shauq-e-walihana

ग़ज़ल

मिरी जुस्तुजू का हासिल मिरा शौक़-ए-वालिहाना

नाज़ मुरादाबादी

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मिरी जुस्तुजू का हासिल मिरा शौक़-ए-वालिहाना
मिरी आरज़ू की मंज़िल न चमन न आशियाना

कोई दिल जहाँ बना है ग़म-ए-इश्क़ का निशाना
वहीं रास आ गई है उसे गर्दिश-ए-ज़माना

कभी याद आ गई है तो घटाएँ छा गई हैं
मैं किसे बताऊँ क्या है तिरी ज़ुल्फ़-ए-काफ़िराना

मिरी शाइ'री में पिन्हाँ मिरे दिल की धड़कनें हैं
मिरी हर ग़ज़ल है गोया ग़म-ए-इश्क़ का फ़साना

ये नज़र नज़र तबाही ये क़दम क़दम मुसीबत
कहीं पस्त हो न जाए मिरा अज़्म-ए-फ़ातेहाना

तिरी हम्द क्या करेंगे ये बयाँ ये लफ़्ज़-ओ-मा'नी
तिरा हुस्न भी अनोखा तिरी ज़ात भी यगाना

ये फ़रोग़-ए-गुलसिताँ है कि बहार से अयाँ है
तिरे हुस्न की हक़ीक़त मिरे इश्क़ का फ़साना

मिरी हर ग़ज़ल है गोया मिरी ज़िंदगी का हासिल
कि हर एक शेर में है मिरा सोज़-ए-आशिक़ाना

ये है नाज़-ए-शौक़ इंसाँ कि रसाई है फ़लक तक
मिरे दर्द-ए-दिल को लेकिन न समझ सका ज़माना