मिरा नहीं तो वो अपना ही कुछ ख़याल करे
उसे कहो कि तअल्लुक़ को फिर बहाल करे
निगाह-ए-यार न हो तो निखर नहीं पाता
कोई जमाल की जितनी भी देख-भाल करे
मिले तो इतनी रिआयत अता करे मुझ को
मिरे जवाब को सुन कर कोई सवाल करे
कलाम कर कि मिरे लफ़्ज़ को सुहुलत हो
तिरा सुकूत मिरी गुफ़्तुगू मुहाल करे
बुलंदियों पे कहाँ तक तुझे तलाश करूँ
हर एक साँस पे उम्र-ए-रवाँ ज़वाल करे
वो होंट हों कि तबस्सुम सुकूत हो कि सुख़न
तिरा जमाल हर इक रंग में कमाल करे
मैं उस का फूल हूँ 'नय्यर' सो उस पे छोड़ दिया
वो गेसुओं में सजाए कि पाएमाल करे
ग़ज़ल
मिरा नहीं तो वो अपना ही कुछ ख़याल करे
शहज़ाद नय्यर