मिरा दिल आ गया झट-पट झपट में
हुआ लट-पट लपट ज़ुल्फ़ों की लट में
नुमायाँ है वो नूर-चश्म-ए-मर्दुम
पलक की पट में पुतली की ऊलट में
अगर दीदार के पाने की है चाह
ले सिमरन आँसूअों की रह रहट में
हर इक नाक़ूस में आती है आवाज़
कि है परघट वो हर हर, हर के घट में
लगी है चट-पटी मत कर निपट हट
छुपे मत लट-पटे घूंगट के पट में
दिल-ए-दीवाना मेरा आ गया है
तिरी ज़ुल्फ़ों के साए की झपट में
'सिराज' उस शम्अ-रू बन जल गया है
निपट हसरत के शोलों की लपट में
ग़ज़ल
मिरा दिल आ गया झट-पट झपट में
सिराज औरंगाबादी