सैर कर अंदलीब का अहवाल
हैं परेशाँ चमन में कुछ पर-ओ-बाल
तब-ए-ग़म तो गई तबीब वले
फिर न आया कभू मिज़ाज-ए-बहाल
सब्ज़ा-नौ-रस्ता रहगुज़ार का हूँ
सर उठाया कि हो गया पामाल
क्यूँ न देखूँ चमन को हसरत से
आशियाँ था मिरा भी याँ पर-साल
सर्द-मेहरी की बस-कि गुल-रू ने
ओढ़ी अब्र-ए-बहार ने भी शाल
हिज्र की शब को याँ तईं तड़पा
कि हुआ सुब्ह होते मेरा विसाल
हम तो सह गुज़रे कज-रवी तेरी
न निभे पर ऐ फ़लक ये चाल
दीदा-ए-तर पे शब रखा था 'मीर'
लुक्का-ए-अब्र है मिरा रूमाल
ग़ज़ल
सैर कर अंदलीब का अहवाल
मीर तक़ी मीर