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तिरे इश्क़ में आगे सौदा हुआ था | शाही शायरी
tere ishq mein aage sauda hua tha

ग़ज़ल

तिरे इश्क़ में आगे सौदा हुआ था

मीर तक़ी मीर

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तिरे इश्क़ में आगे सौदा हुआ था
पर इतना भी ज़ालिम न रुस्वा हुआ था

ख़िज़ाँ इल्तिफ़ात उस पे करती बजा थी
ये ग़ुंचा-ए-चमन में अभी वा हुआ था

कहाँ था तो इस तौर आने से मेरे
गली में तिरी कल तमाशा हुआ था

गई होती सर आबलों के पे हुई ख़ैर
बड़ा क़ज़िया ख़ारों से बरपा हुआ था

गरेबाँ से तब हाथ उठाया था मैं ने
मिरी और दामाँ सहरा हुआ था

ज़हे-तालेअ' ऐ 'मीर' उन ने ये पूछा
कहाँ था तू अब तक तुझे क्या हुआ था