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कल चमन में गुल-ओ-समन देखा | शाही शायरी
kal chaman mein gul-o-saman dekha

ग़ज़ल

कल चमन में गुल-ओ-समन देखा

मीर तक़ी मीर

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कल चमन में गुल-ओ-समन देखा
आज देखा तो बाग़ बन देखा

क्या है गुलशन में जो क़फ़स में नहीं
आशिक़ों का जिला-वतन देखा

ज़ौक़ पैकान-ए-तीर में तेरे
मुद्दतों तक जिगर ने छिन देखा

घर के घर जलते थे पड़े तेरे
दाग़-ए-दिल देखे बस चमन देखा

एक चश्मक-ए-दो-सद सिनान-ए-मिज़ा
इस नुकीले का बाँकपन देखा

शुक्र ज़ाहिद का अपनी आँखों में
मय-इवज़ ख़िरक़ा-ए-मरतुहिन देखा

हसरत उस की जगह थी ख़्वाबीदा
'मीर' का खोल कर कफ़न देखा