कल चमन में गुल-ओ-समन देखा
आज देखा तो बाग़ बन देखा
क्या है गुलशन में जो क़फ़स में नहीं
आशिक़ों का जिला-वतन देखा
ज़ौक़ पैकान-ए-तीर में तेरे
मुद्दतों तक जिगर ने छिन देखा
घर के घर जलते थे पड़े तेरे
दाग़-ए-दिल देखे बस चमन देखा
एक चश्मक-ए-दो-सद सिनान-ए-मिज़ा
इस नुकीले का बाँकपन देखा
शुक्र ज़ाहिद का अपनी आँखों में
मय-इवज़ ख़िरक़ा-ए-मरतुहिन देखा
हसरत उस की जगह थी ख़्वाबीदा
'मीर' का खोल कर कफ़न देखा

ग़ज़ल
कल चमन में गुल-ओ-समन देखा
मीर तक़ी मीर