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मैं भी दुनिया में हूँ इक नाला-परेशाँ यक जा | शाही शायरी
main bhi duniya mein hun ek nala-pareshan yak ja

ग़ज़ल

मैं भी दुनिया में हूँ इक नाला-परेशाँ यक जा

मीर तक़ी मीर

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मैं भी दुनिया में हूँ इक नाला-परेशाँ यक जा
दिल के सौ टुकड़े मिरे पर सभी नालाँ यक जा

पंद-गोयों ने बहुत सीने की तदबीरें लीं
आह साबित भी न निकला ये गरेबाँ यक जा

तेरा कूचा है सितमगार वो काफ़िर जागह
कि जहाँ मारे गए कितने मुसलमाँ यक जा

सर से बाँधा है कफ़न इश्क़ में तेरे या'नी
जम्अ' हम ने भी किया है सर-ओ-सामाँ यक जा

क्यूँके पड़ते हैं तिरे पाँव नसीम-ए-सहरी
उस के कूचे में है सद गंज-ए-शहीदाँ यक जा

तू भी रोने को मिला दिल है हमारा भी भरा
होजे ऐ अब्र बयाबान में गिर्यां यक जा

बैठ कर 'मीर' जहाँ ख़ूब न रोया होवे
ऐसी कूचे में नहीं है तिरे जानाँ यक जा