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रात से आँसू मिरी आँखों में फिर आने लगा | शाही शायरी
raat se aansu meri aankhon mein phir aane laga

ग़ज़ल

रात से आँसू मिरी आँखों में फिर आने लगा

मीर तक़ी मीर

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रात से आँसू मिरी आँखों में फिर आने लगा
यक रमक़ जी था बदन में सो भी घबराने लगा

वो लड़कपन से निकल कर तेग़ चमकाने लगा
ख़ून करने का ख़याल अब कुछ उसे आने लगा

ला'ल-ए-जाँ-बख़्श उस के थे पोशीदा जूँ आब-ए-हयात
अब तो कोई कोई इन होंठों पे मर जाने लगा

हैफ़ मैं उस के सुख़न पर टुक न रक्खा गोश को
यूँ तो नासेह ने कहा था दिल न दीवाने लगा

हब्स-ए-दम के मो'तक़िद तुम होगे शैख़-ए-शहर के
ये तो अलबत्ता कि सुन कर ला'न दम खाने लगा

गर्म मिलना उस गुल-ए-नाज़ुक-तबीअ'त से न हो
चाँदनी में रात बैठा था सौ मुरझाने लगा

आशिक़ों की पाएमाली में उसे इसरार है
या'नी वो महशर-ख़िराम अब पाँव फैलाने लगा

चश्मक उस मह की सी दिलकश दीद में आई नहीं
गो सितारा सुबह का भी आँख झपकाने लगा

क्यूँकर उस आईना-रू से 'मीर' मलिए बे-हिजाब
वो तो अपने अक्स से भी देखो शरमाने लगा