EN اردو
तंग आए हैं दिल उस जी से उठा बैठेंगे | शाही शायरी
tang aae hain dil us ji se uTha baiThenge

ग़ज़ल

तंग आए हैं दिल उस जी से उठा बैठेंगे

मीर तक़ी मीर

;

तंग आए हैं दिल उस जी से उठा बैठेंगे
भूखों मरते हैं कुछ अब यार भी खा बैठेंगे

अब के बिगड़ेगी अगर उन से तो इस शहर से जा
कसो वीराने में तकिया ही बना बैठेंगे

मा'रका गर्म तो टक होने दो ख़ूँ-रेज़ी का
पहले तलवार के नीचे हमीं जा बैठेंगे

होगा ऐसा भी कोई रोज़ कि मज्लिस से कभू
हम तो एक-आध घड़ी उठ के जुदा बैठेंगे

जा न इज़हार-ए-मोहब्बत पे हवसनाकों की
वक़्त के वक़्त ये सब मुँह को छुपा बैठेंगे

देखें वो ग़ैरत-ए-ख़ुर्शीद कहाँ जाता है
अब सर-ए-राह दम-ए-सुब्ह से आ बैठेंगे

भीड़ टलती ही नहीं आगे से उस ज़ालिम के
गर्दनें यार किसी रोज़ कटा बैठेंगे

कब तलक गलियों में सौदाई से फिरते रहिए
दिल को उस ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल से लगा बैठेंगे

शोला-अफ़्शाँ अगर ऐसी ही रही आह तो 'मीर'
घर को हम अपने कसो रात जला बैठेंगे