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क़रार दिल का ये काहे को ढंग था आगे | शाही शायरी
qarar dil ka ye kahe ko Dhang tha aage

ग़ज़ल

क़रार दिल का ये काहे को ढंग था आगे

मीर तक़ी मीर

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क़रार दिल का ये काहे को ढंग था आगे
हमारे चेहरे के ऊपर भी रंग था आगे

उठाएँ तेरे लिए बद-ज़बानियाँ उन की
जिन्हों की हम को ख़ुशामद से नंग था आगे

हमारी आहों से सीने पे हो गया बाज़ार
हर एक ज़ख़्म का कूचा जो तंग था आगे

रहा था शम्अ' से मज्लिस में दोष कितना फ़र्क़
कि जल बुझे थे ये हम पर पतंग था आगे

किया ख़राब तग़ाफ़ुल ने उस के वर्ना 'मीर'
हर एक बात पे दुश्नाम-ओ-संग था आगे