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शैख़ जी आओ मुसल्ला गिरो जाम करो | शाही शायरी
shaiKH ji aao musalla giro jam karo

ग़ज़ल

शैख़ जी आओ मुसल्ला गिरो जाम करो

मीर तक़ी मीर

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शैख़ जी आओ मुसल्ला गिरो जाम करो
जिंस तक़्वा के तईं सिर्फ़ मय-ए-ख़ाम करो

फ़र्श मस्ताँ करो सज्जादा-ए-बे-तह के तईं
मय की ताज़ीम करो शीशे का इकराम करो

दामन-ए-पाक को आलूदा रखो बादे से
आप को मुग़्बचों के क़ाबिल-ए-दुश्नाम करो

नेक-नामी-ओ-तक़ावत को दुआ जल्द कहो
दीन-ओ-दिल पेश-कश सादा-ए-ख़ुद-काम करो

नंग-ओ-नामूस से अब गुज़रो जवानों की तरह
पर फ़िशानी करो और साक़ी से इबराम करो

ख़ूब अगर जुरआ' मय-नोश नहीं कर सकते
ख़ातिर-जमअ' मय-आशाम से ये काम करो

उठ खड़े हो जो झुके गर्दन-ए-मीना-ए-शराब
ख़िदमत-ए-बादा-गुसाराँ ही सर-अंजाम करो

मुतरिब आ कर जो करे चंग-नवाज़ी तो तुम
पैरहन मस्तों की तक़लीद से इनआ'म करो

ख़ुनकी इतनी भी तो लाज़िम नहीं इस मौसम में
पास जोश-ए-गुल-ओ-दिल गर्मी-ए-अय्याम करो

साया-ए-गुल में लब-ए-जू पे गुलाबी रखो
हाथ में जाम को लो आप को बदनाम करो

आह-ए-ता-चंद रहो ख़ानकाह-ओ-मस्जिद में
एक तो सुब्ह-ए-गुलसिताँ में भी शाम करो

रात तो सारी गई सुनते परेशाँ-गोई
'मीर'-जी कोई घड़ी तुम भी तो आराम करो