EN اردو
ख़ूब-रू सब की जान होते हैं | शाही शायरी
KHub-ru sab ki jaan hote hain

ग़ज़ल

ख़ूब-रू सब की जान होते हैं

मीर तक़ी मीर

;

ख़ूब-रू सब की जान होते हैं
आर्ज़ू-ए-जहान होते हैं

गोश-ए-दीवार तक तू जा नाले
उस में गुल को भी कान होते हैं

कभू आते हैं आप में तुझ बिन
घर में हम मेहमान होते हैं

दश्त के फूटे मक़बरों पे न जा
रौज़े सब गुलिस्ताँ होते हैं

हर्फ़-ए-तल्ख़ उन के क्या कहूँ मैं ग़रज़
ख़ूब-रू बद-ज़बान होते हैं

ग़म्ज़ा-ए-चश्म ख़ुश-क़दान-ए-ज़मीं
फ़ित्ना-ए-आसमान होते हैं

क्या रहा है मुशाएरे में अब
लोग कुछ जम्अ' आन होते हैं

'मीर'-ओ-'मिर्ज़ा-रफ़ी' व 'ख़्वाजा-मीर'
कितने इक ये जवान होते हैं