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न इक याक़ूब रोया इस अलम में | शाही शायरी
na ek yaqub roya is alam mein

ग़ज़ल

न इक याक़ूब रोया इस अलम में

मीर तक़ी मीर

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न इक याक़ूब रोया इस अलम में
कुआँ अंधा हुआ यूसुफ़ के ग़म में

कहूँ कब तक दम आँखों में है मेरी
नज़र आवे ही-गा अब कोई दम में

दया आशिक़ ने जी तो ऐब क्या है
यही 'मीर' इक हुनर होता है हम में