न इक याक़ूब रोया इस अलम में 
कुआँ अंधा हुआ यूसुफ़ के ग़म में 
कहूँ कब तक दम आँखों में है मेरी 
नज़र आवे ही-गा अब कोई दम में 
दया आशिक़ ने जी तो ऐब क्या है 
यही 'मीर' इक हुनर होता है हम में
        ग़ज़ल
न इक याक़ूब रोया इस अलम में
मीर तक़ी मीर
        ग़ज़ल
मीर तक़ी मीर
न इक याक़ूब रोया इस अलम में 
कुआँ अंधा हुआ यूसुफ़ के ग़म में 
कहूँ कब तक दम आँखों में है मेरी 
नज़र आवे ही-गा अब कोई दम में 
दया आशिक़ ने जी तो ऐब क्या है 
यही 'मीर' इक हुनर होता है हम में