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मिसाल-ए-साया मोहब्बत में जाल अपना हूँ | शाही शायरी
misal-e-saya mohabbat mein jal apna hun

ग़ज़ल

मिसाल-ए-साया मोहब्बत में जाल अपना हूँ

मीर तक़ी मीर

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मिसाल-ए-साया मोहब्बत में जाल अपना हूँ
तुम्हारे साथ गिरफ़्तार-ए-हाल अपना हूँ

सरिश्क-ए-सुर्ख़ को जाता हूँ जो पिए हर-दम
लहू का प्यासा अलल-इत्तिसाल अपना हूँ

अगरचे नश्शा हूँ सब में ख़ुम-ए-जहाँ में लेक
ब-रंग-ए-मय अरक़-ए-इंफ़िआ'ल अपना हूँ

मिरी नुमूद ने मुझ को किया बराबर ख़ाक
मैं नक़्श-ए-पा की तरह पाएमाल अपना हूँ

हुई है ज़िंदगी दुश्वार मुश्किल आसाँ कर
फिरूँ चलूँ तो हूँ पर मैं वबाल अपना हूँ

तिरा है वहम कि ये ना-तवाँ है जामे में
वगर्ना मैं नहीं अब इक ख़याल अपना हूँ

बला हुई है मिरी गो का तब्-ए-रौशन 'मीर'
हूँ आफ़्ताब व-लेकिन ज़वाल अपना हूँ