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मैं कौन हूँ ऐ हम-नफ़साँ सोख़्ता-जाँ हूँ | शाही शायरी
main kaun hun ai ham-nafasan soKHta-jaan hun

ग़ज़ल

मैं कौन हूँ ऐ हम-नफ़साँ सोख़्ता-जाँ हूँ

मीर तक़ी मीर

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मैं कौन हूँ ऐ हम-नफ़साँ सोख़्ता-जाँ हूँ
इक आग मिरे दिल में है जो शो'ला-फ़िशाँ हूँ

लाया है मिरा शौक़ मुझे पर्दे से बाहर
मैं वर्ना वही ख़ल्वती-ए-राज़-ए-निहाँ हूँ

जल्वा है मुझी से लब-ए-दरिय-ए-सुख़न पर
सद-रंग मिरी मौज है मैं तब-ए-रवाँ हूँ

पंजा है मिरा पंजा-ए-ख़ुर्शीद मैं हर सुब्ह
मैं शाना-सिफ़त साया-ए-रू ज़ुल्फ़-ए-बुताँ हूँ

देखा है मुझे जिन ने सो दीवाना है मेरा
मैं बाइ'स-ए-आशुफ़्तगी-ए-तब-ए-जहाँ हूँ

तकलीफ़ न कर आह मुझे जुम्बिश-ए-लब की
मैं सद सुख़न-आग़ुश्ता-ब-ख़ूँ ज़ेर-ए-ज़बाँ हूँ

हूँ ज़र्द ग़म-ए-ताज़ा-निहालान-ए-चमन से
उस बाग़-ए-ख़िज़ाँ-दीदा में मैं बर्ग-ए-ख़िज़ाँ हूँ

रखती है मुझे ख़्वाहिश-ए-दिल बस-कि परेशाँ
दरपय न हो इस वक़्त ख़ुदा जाने कहाँ हूँ

इक वहम नहीं बेश मिरी हस्ती-ए-मौहूम
उस पर भी तिरी ख़ातिर-ए-नाज़ुक पे गराँ हूँ

ख़ुश-बाशी-ओ-तंज़िया-ओ-तक़द्दुस थे मुझे 'मीर'
अस्बाब पड़े यूँ कि कई रोज़ से याँ हूँ