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मिम्बरों पर भी गुनहगार नज़र आते हैं | शाही शायरी
mimbaron par bhi gunahgar nazar aate hain

ग़ज़ल

मिम्बरों पर भी गुनहगार नज़र आते हैं

शकील शम्सी

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मिम्बरों पर भी गुनहगार नज़र आते हैं
सब क़यामत के ही आसार नज़र आते हैं

इन मसीहाओं से अल्लाह बचाए हम को
शक्ल-ओ-सूरत से जो बीमार नज़र आते हैं

जाने क्या टूट गया है कि हर इक रात मुझे
ख़्वाब में गुम्बद-ओ-मीनार नज़र आते हैं

मात देते हैं यज़ीदों को लहू से हम ही
हम ही नेज़ों पे हर इक बार नज़र आते हैं

आँख खोली है फ़सादात में जिन बच्चों ने
उन को ख़्वाबों में भी हथियार नज़र आते हैं