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मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास | शाही शायरी
milti hai use gauhar-e-shab-tab ki miras

ग़ज़ल

मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास

वलीउल्लाह मुहिब

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मिलती है उसे गौहर-ए-शब-ताब की मीरास
ली मुझ दिल-ए-सद-पारा ने सीमाब की मीरास

हसरत से तिरी चश्म की नर्गिस ने चमन में
पाई है किसी दीदा-ए-बे-ख़्वाब की मीरास

याँ जो दिल-ए-रौशन कि वो ख़ाली है ख़ुदी से
पहुँचाई फ़लक ने उसे महताब की मीरास

इक बीड़ा-ए-पाँ हाथ से तू अपने जो बख़्शे
तूती को मिले ग़ैब से सुरख़ाब की मीरास

पासंग हैं ला'ल उस के भी जिस संग को पहुँचे
इक क़तरा मिरे अश्क के ख़ूँबाब की मीरास

रो-रो के मिरी चश्म ने इस बहर-ए-जहाँ से
ली ख़ाना-ख़राबी के लिए आब की मीरास

ये दर्द-ओ-ग़म-ए-इश्क़ दिला जान ग़नीमत
पहुँची तिरी हुब से तुझे अहबाब की मीरास

दरिया-ए-मोहब्बत से 'मुहिब' ले ही के छोड़ी
मुझ अश्क ने आख़िर दुर-ए-नायाब की मीरास