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मेरी शम-ए-अंजुमन में गुल है गुल में ख़ाक है | शाही शायरी
meri sham-e-anjuman mein gul hai gul mein KHak hai

ग़ज़ल

मेरी शम-ए-अंजुमन में गुल है गुल में ख़ाक है

मुनीर शिकोहाबादी

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मेरी शम-ए-अंजुमन में गुल है गुल में ख़ाक है
दाग़ सीने के चमन में गुल है गुल में ख़ाक है

दाग़-ए-दिल को ख़ाकसारों के लगाया तू ने मुँह
ग़ुंचा-ए-तंग-ए-दहन में गुल है गुल में ख़ाक है

बअ'द हर दिन दाग़ है तेरी कुदूरत का मुझे
सहन-ए-दामान-ए-कफ़न में गुल है गुल में ख़ाक है

या मुकद्दर हो के डूबा है मिरा दिल ऐ परी
या तेरी चाह-ए-ज़क़न में गुल है गुल में ख़ाक है

गर्द-ए-ग़ुर्बत से भरी है मेरे मस्कन की बहार
दामन-ए-सुब्ह-ए-वतन में गुल है गुल में ख़ाक है

दाग-दारों ने कुदूरत से बुना उन का पलंग
सुम्बुल-ए-मौज-ए-रसन में गुल है गुल में ख़ाक है

वहशी-ए-गेसू ने दाग़ा हाथ उड़ाए गर्द-ए-ग़म
शाख़-ए-आहू-ए-ख़ुतन में गुल है गुल में ख़ाक है

दाग़ छल्ले का सरापे में कुदूरत-ज़ा हुआ
गुल-रुख़ों नख़्ल-ए-बदन में गुल है गुल में ख़ाक है

बन गया है शीशा-ए-साअत मगर फ़ानूस-ए-शम्अ'
अक्स शोले का लगन में गुल है गुल में ख़ाक है

सागरों की फूल पीने से हुई मिट्टी ख़राब
जाम-ए-मय बाग़-ए-सुख़न में गुल है गुल में ख़ाक है

गर्द-ए-ज़ुल्मत डाली लाले पर ख़िज़ाँ ने ऐ फ़लक
चाँद के बदले गहन में गुल है गुल में ख़ाक है

बालों में छुप कर किरन फूल उन का मिट्टी हो गया
अफ़ई-ए-गेसू के फन में गुल है गुल में ख़ाक है

दाग़ दे कर मलते हैं ये शम्अ-रू मिट्टी का इत्र
रख़्त-ए-अहल-ए-अंजुमन में गुल है गुल में ख़ाक है

उंसुर-ए-ख़ाकी हुआ बर्बाद अहल-ए-दाग़ का
इन दिनों वहशत के बन में गुल है गुल में ख़ाक है

ज़ख़्म-ए-सर पर डालता हूँ उन बुतों की गर्द-ए-राह
अब कुलाह-ए-बरहमन में गुल है गुल में ख़ाक है

फूल पी पी कर मुकद्दर हो रहा है वो सबीह
देख लो नख़्ल-ए-समन में गुल है गुल में ख़ाक है

है मुकद्दर नूर-ए-मेहर उस रश्क-ए-गुल के हिज्र में
गुलशन-ए-चर्ख़-ए-कुहन में गुल है गुल में ख़ाक है

मेरे दिल में दाग़ है हर दाग़ में है गर्द-ए-ग़म
अंदलीबो इस चमन में गुल है गुल में ख़ाक है

पर्दे में है फूल सा मुँह और मुँह पे गर्द-ए-ख़त
इस सहर के पैरहन में गुल है गुल में ख़ाक है

माथे पर है दाग़-ए-सज्दा दाग़ में गर्द-ए-सुजूद
ख़त्त-ए-क़िस्मत की शिकन में गुल है गुल में ख़ाक है

गर्द-ए-कुल्फ़त लाए है फ़स्ल-ए-बहारी अपने साथ
शाख़-ए-हर-नख़्ल-ए-चमन में गुल है गुल में ख़ाक है

क्या कहूँ इस मिस्रा-ए-फ़रमाइशी में ऐ 'मुनीर'
है हिरन गुल में हिरन में गुल है गुल में ख़ाक है