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मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया | शाही शायरी
meri sari zindagi ko be-samar usne kiya

ग़ज़ल

मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया

मुनीर नियाज़ी

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मेरी सारी ज़िंदगी को बे-समर उस ने किया
उम्र मेरी थी मगर उस को बसर उस ने किया

मैं बहुत कमज़ोर था इस मुल्क में हिजरत के बा'द
पर मुझे इस मुल्क में कमज़ोर-तर उस ने किया

राहबर मेरा बना गुमराह करने के लिए
मुझ को सीधे रास्ते से दर-ब-दर उस ने किया

शहर में वो मो'तबर मेरी गवाही से हुआ
फिर मुझे इस शहर में ना-मो'तबर उस ने किया

शहर को बरबाद कर के रख दिया उस ने 'मुनीर'
शहर पर ये ज़ुल्म मेरे नाम पर उस ने किया