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मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए | शाही शायरी
meri rahon mein kai marhale dushwar aae

ग़ज़ल

मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए

क़मर मुरादाबादी

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मेरी राहों में कई मरहले दुश्वार आए
दैर आया हरम आया रसन-ओ-दार आए

जल्वा-गाहों में अभी शम-ए-यक़ीं जलने दो
क्या अजब है जो कोई तालिब-ए-दीदार आए

महफ़िल-ए-नाज़ के आदाब हैं सब पर लाज़िम
कोई दीवाना यहाँ आए कि होश्यार आए

इश्क़ में वुसअ'त-ए-कौनैन से शाइस्ता गुज़र
क्या ख़बर है कि कहाँ जल्वा-गह-ए-यार आए

साज़-ए-हस्ती में वो सोज़-ए-अबदी पैदा कर
दिल के टूटे हुए तारों से भी झंकार आए

मौज-ओ-साहिल मह-ओ-अंजुम गुल-ओ-लाला देखे
जब कहीं तुझ को न पाया तो सर-ए-दार आए

लज़्ज़त-ए-दर्द नहीं सब के मुक़द्दर में 'क़मर'
जिस के हिस्सा में भी ये दौलत-ए-बेदार आए