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मेरे प्यार का क़िस्सा तो हर बस्ती में मशहूर है चाँद | शाही शायरी
mere pyar ka qissa to har basti mein mashhur hai chand

ग़ज़ल

मेरे प्यार का क़िस्सा तो हर बस्ती में मशहूर है चाँद

शबनम रूमानी

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मेरे प्यार का क़िस्सा तो हर बस्ती में मशहूर है चाँद
तू किस धुन में ग़लताँ पेचाँ किस नश्शे में चूर है चाँद

तेरी ख़ंदा-पेशानी में कब तक फ़र्क़ न आएगा
तू सदियों से अहल-ए-ज़मीं की ख़िदमत पर मामूर है चाँद

अहल-ए-नज़र हँस हँस कर तुझ को माह-ए-कामिल कहते हैं!
तेरे दिल का दाग़ तुझी पर तंज़ है और भरपूर है चाँद

तेरे रुख़ पर ज़र्दी छाई मैं अब तक मायूस नहीं
तेरी मंज़िल पास आ पहुँची मेरी मंज़िल दूर है चाँद

कोई नहीं हमराज़-ए-तमन्ना कोई नहीं दम-साज़-ए-सफ़र
राह-ए-वफ़ा में तन्हा तन्हा चलने पर मजबूर है चाँद

इश्क़ है और काँटों का बिस्तर हुस्न है और फूलों की सेज
तुझ को कैसे समझाऊँ ये दुनिया का दस्तूर है चाँद

तेरी ताबिश से रौशन हैं गुल भी और वीराने भी
क्या तू भी इस हँसती-गाती दुनिया का मज़दूर है चाँद