मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
साज़ छेड़ा न करो गीत सुनाया न करो
जाओ आबाद करो अपनी तमन्नाओं को
मुझ को महफ़िल का तमाशाई बनाया न करो
मेरी राहों में जो काँटे हैं तो क्यूँ फूल मिलें
मेरे दामन को उलझने दो छुड़ाया न करो
तुम ने अच्छा ही किया साथ हमारा न दिया
बुझ चुके हैं जो दिए उन को जलाया न करो
मेरे जैसा कोई पागल न कहीं मिल जाए
तुम किसी मोड़ पे तन्हा कभी जाया न करो
ये तो दुनिया है सभी क़िस्म के हैं लोग यहाँ
हर किसी के लिए तुम आँख बिछाया न करो
ज़हर-ए-ग़म पी के भी कुछ लोग जिया करते हैं
उन को छेड़ा न करो उन को सताया न करो
ग़ज़ल
मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो
शौकत परदेसी