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मेरे गले से आन के प्यारा जो फिर लगे | शाही शायरी
mere gale se aan ke pyara jo phir lage

ग़ज़ल

मेरे गले से आन के प्यारा जो फिर लगे

आफ़ताब शाह आलम सानी

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मेरे गले से आन के प्यारा जो फिर लगे
ये अब्र ये बहार मुझे ख़ूब-तर लगे

बिन देखे उस प्यारे के आँखों ने अपना हाल
ऐसा किया है जैसे कि बाराँ का झड़ लगे

मत इस अदा ओ नाज़ से गुलशन में कर गुज़र
डरता हूँ मैं मबादा किसी की नज़र लगे

हो चार चश्म कौन सके ऐसे यार से
आँखों के देखते ही पिया की ख़तर लगे

हर लैल ओ हर नहार तिरी ज़ात-ए-पाक से
कहता है 'आफ़्ताब' दुआ-ए-सहर लगे