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मेरा ख़याल उन की तमन्ना कहें जिसे | शाही शायरी
mera KHayal unki tamanna kahen jise

ग़ज़ल

मेरा ख़याल उन की तमन्ना कहें जिसे

तालिब बाग़पती

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मेरा ख़याल उन की तमन्ना कहें जिसे
उन का गुमान रंजिश-ए-बे-जा कहें जिसे

मैं आरज़ू-ए-मौत किस उम्मीद पर करूँ
वो जानता है रश्क-ए-मसीहा कहें जिसे

सच पूछिए तो नाम इसी का है ज़िंदगी
हम इस्तिलाह-ए-इश्क़ में मरना कहें जिसे

उफ़्तादगी में दिल भी शरीक-ए-अलम नहीं
दुनिया में आह कौन है अपना कहें जिसे

सर फोड़ना जुनूँ में दलील-ए-कमाल है
फ़र्ज़ानगी-ए-इश्क़ है सौदा कहें जिसे

दीबाचा-ए-फ़ना है हक़ीक़त में ज़िंदगी
या'नी सुकून-ए-होश है मरना कहें जिसे

मेरे ख़ुलूस पर भी हज़ारों शोकूक हैं
'तालिब' ये है नसीब का लिक्खा कहें जिसे