मेरा दिल चाक हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह
अब गुलिस्ताँ नज़र आता है बयाबाँ की तरह
मेरे सीने में मुनव्वर हुए यादों के चराग़
बज़्म-ए-ख़ूबाँ की तरह शहर-ए-निगाराँ की तरह
कोई मोनिस कोई हमदम कोई साथी न मिला
मैं परेशाँ ही रहा ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ की तरह
ख़त्म हो जाएगी हर रौशनी दुनिया की मगर
तुम चमकते ही रहोगे मह-ए-ताबाँ की तरह
मैं ने चाहा कि सँभल जाए तबीअत मेरी
दिल टपकता ही रहा दीदा-ए-गिर्यां की तरह
चश्म-ए-उल्फ़त से न देखा कभी दुनिया ने मुझे
मैं खटकता ही रहा ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की तरह
मेरे साक़ी तिरे अंदाज़-ए-करम के सदक़े
अब तो 'मैकश' भी नज़र आता है इंसाँ की तरह
ग़ज़ल
मेरा दिल चाक हुआ चाक-ए-गरेबाँ की तरह
मैकश नागपुरी