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मेरा आईना मिरी शक्ल दिखाता है मुझे | शाही शायरी
mera aaina meri shakl dikhata hai mujhe

ग़ज़ल

मेरा आईना मिरी शक्ल दिखाता है मुझे

तालिब चकवाली

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मेरा आईना मिरी शक्ल दिखाता है मुझे
ये वो अपना है जो बेगाना बताता है मुझे

मेरे एहसास-ए-दुई को ये हवा देता है
मेरी हस्ती का ये एहसास कराता है मुझे

कर्ब एहसास कराता है ख़ुदी के दर्शन
ज़ो'म-ए-हस्ती के झरोके में सजाता है मुझे

क़द्र-ओ-क़ीमत को बढ़ाने का बढ़ावा दे कर
बहर-ए-नीलाम कहाँ दिल लिए जाता है मुझे

सादगी मेरी उसे देती है इज़्न-ए-गुफ़्तार
मुझ को आती है हँसी जब वो बनाता है मुझे

भूल जाता हूँ सभी जौर-ओ-जफ़ा के क़िस्से
जब कोई गीत मोहब्बत के सुनाता है मुझे

कौन सुनता है मिरे दुख की कहानी 'तालिब'
जिस से कहता हूँ वो अपनी ही सुनाता है मुझे