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में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे | शाही शायरी
mein na kahta tha ki shahron mein na ja yar mere

ग़ज़ल

में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे

ताहिर फ़राज़

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में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे
सोंधी मिट्टी ही में होती है वफ़ा यार मिरे

कोई टूटे हुए ख़्वाबों से कहाँ मिलता है
हर जगह दर्द का बिस्तर न लगा यार मिरे

सिलसिला फिर से जुड़ा है तो जुड़ा रहने दे
दिल के रिश्तों को तमाशा न बना यार मिरे

अपनी चाहत के शब-ओ-रोज़ मुकम्मल कर ले
जा ये सूरज भी तिरे नाम किया यार मिरे

तुझ से मिलता हूँ तो रिश्ता कोई याद आता है
सिलसिला मुझ से ज़ियादा न बढ़ा यार मिरे

ऐसा लगता है कि कुछ टूट रहा है मुझ में
छोड़ के तू मुझे इस वक़्त न जा यार मिरे

ख़ुश-नसीबी से ये साअ'त तिरे हाथ आई है
आसमाँ झुकने लगा हाथ बढ़ा यार मिरे