में आशिक़ हूँ मुझे मक़्तल में अपना नाम करना है 
डरेगा ख़ंजर-ए-क़ातिल से क्या वो जिस को मरना है 
मदद कर इश्क़-ए-सादिक़ जज़्ब-ए-कामिल मुझ से महज़ूँ की 
शब-ए-ग़म नाला करना है और इस जी से गुज़रना है 
न फेंको संग-ए-ख़ारा पर हिफ़ाज़त चाहिए इस की 
कि रख कर मिरअत-ए-दिल रू-ब-रू तुम को सँवरना है 
ये जाम-ए-दीदा-ए-हसरत भरूँगा अश्क-ए-ख़ूनी से 
मय-ए-गुलगूँ तुझे पीर-ए-मुग़ाँ साग़र में भरना है 
ठहर जा बुलबुल-ए-ग़मगीं कहाँ तक ज़ारी-ओ-शेवन 
कि मुर्ग़-ए-बोसतान-ए-इश्क़ को भी नाला करना है 
सरिश्क-ए-चश्म-ए-पुर-नम की रवानी से परेशाँ हूँ 
जुनूँ क्या दीदा-ए-हसरत हमारा कोई झरना है 
'जमीला' सफ़्हा-ए-महताब पर लहरा गए काले 
सितम इन गेसुओं का दोश पर उन के बिखरना है
        ग़ज़ल
में आशिक़ हूँ मुझे मक़्तल में अपना नाम करना है
जमीला ख़ुदा बख़्श

