मेहरबाँ पाते नहीं तेरे तईं यक आन हम
फिर भला दिल के निकालें किस तरह अरमान हम
हर क़दम पर जिस के एजाज़-ए-मसीहाई फ़िदा
उस अदा उस नाज़ उस रफ़्तार के क़ुर्बान हम
उम्र भर साक़ी न छोड़ी मय-कदा की बंदगी
एक ही पैमाने पर करते हैं ये पैमान हम
कोई तो दावत बता दो इस तरह की शैख़ जी
एक शब तो अपने घर इस को रखें मेहमान हम
हाँ मगर सलवात पढ़ना देख तुझ को दम-ब-दम
और क्या रखते हैं तेरी शान के शायान हम
जी में हम बरपा करें ज़ंजीर का ग़ुल ऐ जुनूँ
वादी-मजनूँ को देखें किस तरह सुनसान हम
रात दिन सोहबत है जिन को बे-तकल्लुफ़ आप से
पूछना क्या वो तो बेहतर हैं भला ऐ जान हम
तू ने दुज़-दीदा निगाहें जब लड़ाईं ग़ैर से
हो गए नाचार प्यारे जान कर अंजान हम
हम-नशीं सरकार के ही जा-ब-जा ग़म्माज़ हैं
कीजिए तहक़ीक़ इसे करते नहीं बोहतान हम
सैर को आता है वो 'ईमान' जा कर बाग़ में
खोल देवें चार दिन आगे ही गुल के कान हम
ग़ज़ल
मेहरबाँ पाते नहीं तेरे तईं यक आन हम
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान