मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
ताज़ा हवा पे बंद न दरवाज़ा कीजिए
या छेड़िए न मंज़र-ए-नादीदनी का ज़िक्र
या मिस्ल-ए-आफ़्ताब बहम ग़ाज़ा कीजिए
या लब पे लाइए न परेशानियों की बात
या जम्अ बैठ कर कभी शीराज़ा कीजिए
बहलाएँ दिल को ख़्वाब-ए-ख़ुश-आइंद से न क्यूँ
क्या फ़ाएदा कि ज़ख़्म-ए-कुहन ताज़ा कीजिए
इस दौर में कि चेहरे ही 'अंजुम' हुए हैं मस्ख़
क्या ख़त्त-ओ-ख़ाल से तिरे अंदाज़ा कीजिए
ग़ज़ल
मौसम का आह-ओ-नाला से अंदाज़ा कीजिए
अंजुम रूमानी