मत पूछ तू जाने दे अहवाल को फ़ुर्क़त के
जिस तौर कटे काटे अय्याम मुसीबत के
जी में है दिखा दीजे यक रोज़ तिरे क़द को
जो शख़्स कि मुनकिर हैं ऐ यार क़यामत के
कहता हूँ ग़लत तुझ से मैं दिल को छुड़ाऊँगा
छूटते हैं कहीं प्यारे बाँधे हुए उल्फ़त के
क़स्र-ओ-महल-ए-मुनइम तुझ को ही मुबारक हों
बैठे हैं हम आसूदा गोशे में क़नाअत के
बेदार छुपाए से छुपते हैं कोई तेरे
चेहरे से नुमायाँ हैं आसार मोहब्बत के
ग़ज़ल
मत पूछ तू जाने दे अहवाल को फ़ुर्क़त के
मीर मोहम्मदी बेदार