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मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है | शाही शायरी
masti ba-zauq-e-ghaflat-e-saqi halak hai

ग़ज़ल

मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है

मिर्ज़ा ग़ालिब

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मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
मौज-ए-शराब यक-मिज़ा-ए-ख़्वाब-नाक है

जुज़ ज़ख्म-ए-तेग़-ए-नाज़ नहीं दिल में आरज़ू
जेब-ए-ख़याल भी तिरे हाथों से चाक है

जोश-ए-जुनूँ से कुछ नज़र आता नहीं 'असद'
सहरा हमारी आँख में यक-मुश्त-ए-ख़ाक है