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मस्त उड़ते परिंदों को आवाज़ मत दो कि डर जाएँगे | शाही शायरी
mast uDte parindon ko aawaz mat do ki Dar jaenge

ग़ज़ल

मस्त उड़ते परिंदों को आवाज़ मत दो कि डर जाएँगे

राजेन्द्र मनचंदा बानी

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मस्त उड़ते परिंदों को आवाज़ मत दो कि डर जाएँगे
आन की आन में सारे औराक़-ए-मंज़र बिखर जाएँगे

शाम चाँदी सी इक याद पलकों पे रख कर चली जाएगी
और हम रौशनी रौशनी अपने अंदर उतर जाएँगे

कौन हैं किस जगह हैं कि टूटा है जिन के सफ़र का नशा
एक डूबी सी आवाज़ आती है पैहम कि घर जाएँगे

ऐ सितारो तुम्हें अपनी जानिब से शायद न कुछ दे सकें
हम मगर रास्तों में रखे सब चराग़ों को भर जाएँगे

वक़्त में इक जगह सी बनाते हुए तीरा लम्हे यही
कोई अंधी कहानी मिरे दिल पे तहरीर कर जाएँगे

हम ने समझा था मौसम की बे-रहमियों को भी ऐसा कहाँ
इस तरह बर्फ़ गिरती रहेगी कि दरिया ठहर जाएँगे

आज आया है इक उम्र की फुर्क़तों में अजब ध्यान सा
यूँ फ़रामोशियाँ काम कर जाएँगी ज़ख़्म भर जाएँगे