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मसनद-ए-ग़म पे जच रहा हूँ मैं | शाही शायरी
masnad-e-gham pe jach raha hun main

ग़ज़ल

मसनद-ए-ग़म पे जच रहा हूँ मैं

जौन एलिया

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मसनद-ए-ग़म पे जच रहा हूँ मैं
अपना सीना खुरच रहा हूँ मैं

ऐ सगान-ए-गुरसना-ए-अय्याम
जूँ ग़िज़ा तुम को पच रहा हूँ मैं

अन्दरून-ए-हिसार-ए-ख़ामोशी
शोर की तरह मच रहा हूँ मैं

वक़्त का ख़ून-ए-राएगाँ हूँ मगर
ख़ुश्क लम्हों में रच रहा हूँ मैं

ख़ून में तर-ब-तर रहा मिरा नाम
हर ज़माने का सच रहा हूँ मैं

हाल ये है कि अपनी हालत पर
ग़ौर करने से बच रहा हूँ मैं