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मस्कन-ए-माह-ओ-साल छोड़ गया | शाही शायरी
maskan-e-mah-o-sal chhoD gaya

ग़ज़ल

मस्कन-ए-माह-ओ-साल छोड़ गया

जौन एलिया

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मस्कन-ए-माह-ओ-साल छोड़ गया
दिल को उस का ख़याल छोड़ गया

ताज़ा-दम जिस्म-ओ-जाँ थे फ़ुर्क़त में
वस्ल उस का निढाल छोड़ गया

अहद-ए-माज़ी जो था अजब पुर-हाल
एक वीरान हाल छोड़ गया

झाला-बारी के मरहलों का सफ़र
क़ाफ़िले पाएमाल छोड़ गया

दिल को अब ये भी याद हो कि न हो
कौन था क्या मलाल छोड़ गया

मैं भी अब ख़ुद से हूँ जवाब-तलब
वो मुझे बे-सवाल छोड़ गया