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मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो | शाही शायरी
mariz-e-gham ke sahaaro koi to baat karo

ग़ज़ल

मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो

शकेब जलाली

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मरीज़-ए-ग़म के सहारो कोई तो बात करो
उदास चाँद सितारो कोई तो बात करो

कहाँ है डूब चुका अब तो डूबने वाला
शिकस्ता-दिल से किनारो कोई तो बात करो

मिरे नसीब को बर्बादियों से निस्बत है
लुटी हुई सी बहारो कोई तो बात करो

कहाँ गया वो तुम्हारा बुलंदियों का जुनून
बुझे बुझे से शरारो कोई तो बात करो

इसी तरह से अजब क्या जो कुछ सुकून मिले
ग़म-ए-फ़िराक़ के मारो कोई तो बात करो

तुम्हारा ग़म भी मिटाती हैं मस्तियाँ कि नहीं
शराब-ए-नाब के मारो कोई तो बात करो

तुम्हारी ख़ाक उड़ाता नहीं 'शकेब' तो क्या
उदास राह-गुज़ारो कोई तो बात करो