मरी वफ़ा ने खिलाए थे जो गुलाब सारे झुलस गए हैं
तुम्हारी आँखों में जिस क़दर थे वो ख़्वाब सारे झुलस गए हैं
मरी ज़मीं को किसी नए हादसे का है इंतिज़ार शायद
गुनाह फलने लगे हैं अज्र ओ सवाब सारे झुलस गए हैं
जो तुम गए तो मिरी नज़र पे हक़ीक़तों के अज़ाब उतरे
ये सोचता हूँ कि क्या करूँगा सराब सारे झुलस गए हैं
ये मो'जिज़ा सिर्फ़ एक शब की मसाफ़तों के सबब हुआ है
तुम्हारे और मेरे दरमियाँ के हिजाब सारे झुलस गए हैं
उसे बताना कि उस की यादों के सारे सफ़्हे जला चुका हूँ
किताब-ए-दिल में रक़म थे जितने वो बाब सारे झुलस गए हैं
नज़र उठाऊँ मैं जिस तरफ़ भी मुहीब साए हैं ज़ुल्मतों के
ये क्या कि मेरे नसीब के माहताब सारे झुलस गए हैं
तुम्हारी नज़रों की ये तपिश है कि मेरे लफ़्ज़ों पे आबले हैं
सवाल सारे झुलस गए हैं जवाब सारे झुलस गए हैं
ये आग ख़ामोशियों की कैसी तुम्हारी आँखों में तैरती है
तुम्हारे होंटों पे दर्ज थे जो निसाब सारे झुलस गए हैं

ग़ज़ल
मरी वफ़ा ने खिलाए थे जो गुलाब सारे झुलस गए हैं
वसी शाह