मरज़ के वास्ते इतनी दवा ज़ियादा है
मिरे सवाल से तेरी अता ज़ियादा है
तुम्हारी सुब्ह में एक रंग है नदामत का
मुझे भी रात से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा ज़ियादा है
मिरी वफ़ाओं की उजरत तुम्हारी जान में है
मिरे हिसाब से ये ख़ूँ-बहा ज़ियादा है
शराब-ए-इश्क़ है दोनों के जाम में लेकिन
मिरी शराब में ख़ून-ए-वफ़ा ज़ियादा है
न जाने ढल गया कैसे मैं तेरे साँचे में
मिरे मिज़ाज में वैसे अना ज़ियादा है
ये शोहरतें नए दुश्मन बहुत बनाती हैं
सँभल के रहना तुम्हारी हवा ज़ियादा है

ग़ज़ल
मरज़ के वास्ते इतनी दवा ज़ियादा है
महशर आफ़रीदी