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मरज़ के वास्ते इतनी दवा ज़ियादा है | शाही शायरी
maraz ke waste itni dawa ziyaada hai

ग़ज़ल

मरज़ के वास्ते इतनी दवा ज़ियादा है

महशर आफ़रीदी

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मरज़ के वास्ते इतनी दवा ज़ियादा है
मिरे सवाल से तेरी अता ज़ियादा है

तुम्हारी सुब्ह में एक रंग है नदामत का
मुझे भी रात से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा ज़ियादा है

मिरी वफ़ाओं की उजरत तुम्हारी जान में है
मिरे हिसाब से ये ख़ूँ-बहा ज़ियादा है

शराब-ए-इश्क़ है दोनों के जाम में लेकिन
मिरी शराब में ख़ून-ए-वफ़ा ज़ियादा है

न जाने ढल गया कैसे मैं तेरे साँचे में
मिरे मिज़ाज में वैसे अना ज़ियादा है

ये शोहरतें नए दुश्मन बहुत बनाती हैं
सँभल के रहना तुम्हारी हवा ज़ियादा है