मक़ाम और भी आएँगे ला-मकान के बाद
ज़रूर होंगे जहाँ और इस जहान के बाद
शिकस्ता पर थे मिरे और ख़त्म थी परवाज़
इक आसमान था बाक़ी इक आसमान के बाद
जो कामयाबी मिली वो हमें उबूरी मिली
कुछ इम्तिहान थे बाक़ी हर इम्तिहान के बाद
वो जैसा तय था वहाँ कुछ भी तो न था ऐसा
निशान कोई नहीं था उस इक निशान के बाद
ज़वाल ऐसा कि सारे फ़राज़ पस्त हुए
नशेब-ए-वहम बहुत था हद्द-ए-ग़ुमान के बाद
तवक़्क़ो उस की थी महदूद मैं भी चुप ही रहा
सफ़र के और भी तोहफ़े थे अरमुग़ान के बाद
वो पहला ज़ीना था मंज़िल जिसे अबस जाना
कुछ आगही के मराहिल थे और ध्यान के बाद
इक उस का टूटना गोया शिकस्त मेरी थी
चला न तीर कोई मुझ से उस कमान के बाद
रहा वो जोश न वो दाद ही रही 'बेताब'
सुकूत रह गया फिर ख़त्म दास्तान के बाद
ग़ज़ल
मक़ाम और भी आएँगे ला-मकान के बाद
प्रीतपाल सिंह बेताब