मंज़िल कहाँ है दूर तलक रास्ते हैं यार
किस जुस्तुजू में ख़्वाब के ये क़ाफ़िले हैं यार
पल पल बदलता रहता है तहज़ीब का मिज़ाज
लम्हों की दस्तरस में अजब सिलसिले हैं यार
है साबिक़ा हज़ार मराहिल से और फिर
इस ज़िंदगी के बा'द भी कुछ मरहले हैं यार
तू ही बता तुझे मैं रखूँ किस शुमार में
अच्छे बुरे सभी से मिरे राब्ते हैं यार
हाँ तुझ से बेवफ़ाई की उम्मीद तो नहीं
पर सच कहूँ तो दिल में कई वाहिमे हैं यार
ख़्वाहिश का एहतिराम है जज़्बों की आँच भी
नींदों का एहतिमाम है और रत-जगे हैं यार
नज़्में कहाँ हैं फ़लसफ़े मंज़ूम हैं तमाम
ग़ज़लें कहाँ हैं इश्क़ के सब मरसिए हैं यार
अहबाब रिश्ते-दार सभी मुंबई में हैं
लेकिन दिलों के बीच बड़े फ़ासले हैं यार
ग़ज़ल
मंज़िल कहाँ है दूर तलक रास्ते हैं यार
हामिद इक़बाल सिद्दीक़ी