मंज़िल भी मिलेगी रस्ते में तुम राहगुज़र की बात करो
आग़ाज़-ए-सफ़र से पहले क्यूँ अंजाम-ए-सफ़र की बात करो
ज़ालिम ने लिया है शर्मा कर फिर गोशा-ए-दामाँ चुटकी में
है वक़्त कि तुम बेबाकी से अब दीदा-ए-तर की बात करो
आया है चमन में मौसम-ए-गुल आई हैं हवाएँ ज़िंदाँ तक
दीवार की बातें हो लेंगी इस वक़्त तो दर की बात करो
है तेज़ हवा हिलता है क़फ़स ख़तरे में पड़ी है हर तीली
फ़रियाद-ए-असीरी बंद करो अब जुम्बिश-ए-पर की बात करो
क्यूँ दार-ओ-रसन के साए में मंसूर की बातें करते हो
रखना है जो ऊँचा सर अपना तो अपने ही सर की बात करो
क्यूँ अहल-ए-जुनूँ अर्बाब-ए-ख़िरद की महफ़िल में ख़ामोश रहें
वो अपने हुनर की बात करें तुम अपने हुनर की बात करो
क्या बरबत-ओ-दफ़ दम तोड़ चुके मौत आ गई क्या हर नग़्मे को
तुम मुतरिब-ए-जाम-ओ-मीना हो क्यूँ तेग़ ओ सिपर की बात करो
ग़ज़ल
मंज़िल भी मिलेगी रस्ते में तुम राहगुज़र की बात करो
परवेज़ शाहिदी