मंज़र दे बीनाई दे
काफ़ और नून दिखाई दे
सब हैं चुप और इक इक लफ़्ज़
दीवारों को सुनाई दे
तू आए तो मुझ को भी
ईद का चाँद दिखाई दे
ख़ाली हाथ चलूँ मैं क्यूँ
मुझ को किसी की आई दे
मैं दुक्तूर 'तसव्वुर' हूँ
मुझे हुरूफ़ अढ़ाई दे

ग़ज़ल
मंज़र दे बीनाई दे
हरबंस तसव्वुर